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R & R Policy
छत्तीसगढ़ शासन
पुनर्वास विभाग
 
राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति - 2007
(यथासंशोधित)

 

छत्तीसगढ़ राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति - 2007 (यथासंशोधित)
प्रस्तावना:-
1. प्राकृतिक संसाधनो से भरपूर छत्तीसगढ़ राज्य क्रमश: विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। आर्थिक क्षेत्र के विभिन्न सेक्टरों में नयी विकास परियोजनाएं तथा विद्युत उत्पादन, सिंचाई, खनिज उत्पादन, राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों का विकास आदि, क्रियान्वित हो रही है और अनेको नई परियोजनाओं के लिये निजी भूमि के अर्जन की आवश्यकता होती है। बडी परियोजनाओं के लिये आबादी क्षेत्रों का पुनर्स्थापन भी आवश्यक होता है।
2. पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश राज्य में कतिपय विभागीय पुनर्वास नीतियां तो प्रचलित थी किन्तु एक समग्र पुनर्वास नीति नहीं थी। वर्तमान में अलग-अलग सेक्टरों की परियोजनाओं के अन्तर्गत की जाने वाली पुनर्वास व्यवस्था में एकरूपता का अभाव है। अतएव एक समग्र आदर्श पुनर्वास नीति बनाने की आवश्यकता है।
3. छत्तीसगढ़ राज्य की यह आदर्श पुनर्वास नीति उपर्युक्त आवश्यकता की पूर्ति करेगी। इसके फलस्वरूप विकास परियोजनाओं से प्रभावित व्यक्तियों के सुविधाजनक पुनर्वास में तो मदद मिलेगी हीं समुचित पुर्नस्थापना होने से विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन को भी गति मिलेगी।

 

उद्देश्य एवं मार्गदर्शी सिद्धान्त:-
1.1 उद्देश्य:
पुनर्वास नीति का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में क्रियान्वित की जाने वाली विभिन्न शासकीय तथा निजी संस्थानों की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि के अधिग्रहण से प्रभावित व्यक्तियों की अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि का समुचित मुआवजा मिलने के साथ-साथ उनके रहने और रोजगार की ऐसी व्यवस्था हो सके जो भूमि अधिग्रहण के पूर्व की स्थिति के समकक्ष अथवा बेहतर हो। इस हेतु निम्नलिखित के संबंध में विशिष्ट प्रावधान किये गए हैः-
1.1.1 परियोजना से प्रभावित व्यक्तियों को उनकी अधिग्रहित भूमि तथा अन्य अचल संपत्ति के लिए वैकल्पित भूमि का आबंटन तथा/अथवा वाजिब मुआवजे का वितरण विस्थापन के पूर्व सुनिश्चित करना।
1.1.2 परियोजना से प्रभावित ऐसे परिवारों को जिनके आवासीय भवन अधिग्रहीत हो, नए स्थान पर सुनियोजित बसाहट स्थापित कर उनके रहने की ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था करना जो मूल सुविधा के समक्ष अथवा बेहतर हो।
1.1.3 परियोजना से प्रभावित परिवारों को परियोजना में स्थाई रोजगार उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना।
1.1.4 परियोजना से प्रभावित ऐसे भूमिहीन परिवारों, जो कृषि के भिन्न धन्धे/रोजगार के माध्यम से जीवन यापन करते हों के लिए यथासंभव उनके मूल धन्धे/ रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था करना।
1.1.5 यह सुनिश्चित करना कि किसी परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का हीं अधिग्रहण किया जाए और यदि अधिग्रहीत भूूमि का उपयोग विहित प्रयोजन हेतु न हो तो जहां ऐसा करना विधि सम्मत हो, अधिग्रहित भूमि का मूल प्रयोजन या अन्य आवश्यक प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जा सके।
1.1.6 परियोजना से प्रभावित परिवारों/व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था इस नीति के अनुरूप हो, यह सुनिश्चित करने के लिए पुनर्वास कार्यों के पर्यवेक्षण तथा मानिटरिंग की व्यवस्था करना।
1.2 मार्गदर्शी सिध्दान्त:-
उपर्युक्त उद्देश्य की प्राप्ति निम्नलिखित मार्गदर्शी सिध्दान्तों का पालन करते हुए की जाएगी:-
1.2.1 यह नीति इसके प्रकाशन के दिनांक से समस्त ऐसी परियोजनाओं पर लागू होगी जिनमें प्रकाशन के दिनांक तक भू-अर्जन की कार्यवाही अर्थात् अवार्ड पारित होने की कार्यवाही पूर्ण नहीं हुई हो।
1.2.2 पुनर्वास के प्रयोजनों के लिए राजस्व ग्राम तथा वन ग्राम में कोई अन्तर नहीं किया जाएगा।
1.2.3 विभाग/निजी संस्थानों द्वारा अधिग्रहित भूमि का उपयोग अधिग्रहण के लिए विनिर्दिष्ट प्रयोजनों अथवा सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित अन्य प्रयोजन के लिए एक निश्चित कालावधि के भीतर करना आवश्यक होगा। ऐसा न करने पर अधिग्रहित भूमि का उपयोग, जिन मामलों में ऐसा करना विधि सम्मत हो उसके मूल प्रयोजन अथवा राज्य शासन द्वारा निर्देशित किसी अन्य प्रयोजन के लिए किया जा सकेगा।
1.2.4 जिन मामलो में किसी परियोजना के लिए आबादी/आवासीय भूमि भी अधिग्रहित हो, उनके परियोजना के क्षेत्र समीप वैकल्पिक सुनियोजित बसाहट का प्रावधान पुनर्वास योजना में ही किया जाएगा। वैकल्पिक बसाहट में मूलभूत आवासीय, व्यवसायिक तथा वाणिज्यिक सुविधाएं निर्मित की जाएंगी, जो मूल बसाहट के समकक्ष या उससे बेहतर होगी।
1.2.5 पुनर्वास योजना में कमजोर वर्गो तथा अनुसूचित क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस हेतु व्यक्तियों जो भू-अर्जन अधिनियम की धारा-4 के तहत प्रकाशित अधिसूचना की तारीख के न्यूनतम तीन वर्ष पूर्व से शासकीय भूमि पर रह रहें हों अथवा अनुसूचित क्षेत्र में वर्ष 1990 के पूर्व से शासकीय भूमि पर कृषि कार्य कर रहे हों, को भी पुनर्वासित किया जाएगा।
1.2.6 परियोजना से प्रभावित व्यक्तियों के लिए स्थापना नई बसाहटों मे अधोसंरचना निर्माण/विकास कार्य कराने हेतु राज्य की सभी योजनाओं का लाभ प्राथमिकता पर उपलब्ध कराया जाएगा ताकि नई बसाहटों में मूलभूत तथा नागरिक सुविधाएं पहले से बेहतर बनाई जा सके।
1.2.7 वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से प्रभावित ऐसे विस्थापित परिवारों, जिनकी 75 प्रतिशत से अधिक भूमि अर्जित हो, के लिए सदस्य को उसकी अर्हतानुसार परियोजना मे रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। औद्योगिक तथा खनन परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से प्रभावित प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य को उसकी अर्हतानुसार रोजगार की व्यवस्था की जाएगी।
1.2.8 परियोजना से प्रभावित परिवारों को उनकी मूल स्थिति से बेहतर स्थिति में लाने के लिए उपर्युक्त के अतिरिक्त शासन के हितग्राही मूलक योजनाओं, जिनमें स्वरोजगार की योजना भी शामिल होगी, का लाभ दिया जाएगा। योजनाओं का लाभ लेने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
1.2.9 परियोजना के लिए भू-अधिग्रहण तथा पुनर्वास योजना के क्रियान्वयन की कार्यवाही साथ-साथ की जाएगी।
1.2.10 पुनर्वास योजना का समयबध्द क्रियान्वयन करने और प्रभावित व्यक्तियों को लाभ उपलब्ध कराने के सतत पर्यवेक्षण तथा मानिटरिंग की व्यवस्था हेतु राज्य स्तरीय तथा जिला स्तरीय समितियां गठित की जाएंगी।
2. परिभाषाएं:-
2.1 (क) ग्राम का साधारणतया निवासी व्यक्ति:- ग्राम के साधारणतया निवासी व्यक्ति से तात्पर्य ग्राम में रहते हुए कृषि कार्य (स्वयं की भूमि या अन्य की भूमि पर कृषि या मजदूरी) करने वाले या कारीगरी, शिल्पकारी या सेवा कार्य करने वाले से है।
(ख) प्रभावित व्यक्ति:- प्रभावित व्यक्ति से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो उस क्षेत्र में, जिसकी परियोजना के लिये आवश्यकता है, भू-अर्जन की धारा 4 के अधीन अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीन वर्ष पूर्व से साधारणतया रहता है तथा कोई व्यापार धंधा, या आजीविका के लिये कार्य करता रहा है या कम से कम तीन वर्ष पूर्व से निजी भूमि पर काश्त करता रहा है या कम से कम तीन वर्ष पूर्व से निजी भूमि पर काश्त करता रहा है।
(ग) प्रभावित परिवार:- प्रभावित परिवार में शामिल है कोई प्रभावित व्यक्ति, उसकी पत्नि या पति तथा नाबालिग बच्चे और प्रभावित व्यक्ति पर आश्रित वृद्ध माता-पिता, विधवा मॉ या बहन तथा अविवाहित पुत्री।
(घ) विस्थापित व्यक्तिः-विस्थापित व्यक्ति से तात्पर्य है कोई भूमि स्वामी, शासकीय पट्टेदार अथवा किसी सम्पत्ति का मालिक जो परियोजना के लिये उसकी भूमि के अर्जन के कारण जिसमें आबादी भू-खण्ड का अर्जन भी सम्मिलित है, ऐसी भूमि अथवा सम्पत्ति से विस्थापित हो गया हो।
(ङ) विस्थापित परिवार से तात्पर्य है कोई विस्थापित व्यक्ति, उसकी पत्नि तथा नाबालिग बच्चे और विस्थापित व्यक्ति पर आश्रित वृद्ध माता-पिता, विधवा मां या बहन तथा अविवाहित पुत्री।
स्पष्टीकरण:-
विस्थापित व्यक्ति के बालिग पुत्र को जो भू-अर्जन की धारा-4 के अन्तर्गत अधिसूचना प्रकाशित होने की तारीख से बालिग हो गया है, एक अलग परिवार के रूप में माना जाएगा।
(च) भूमिहीन कृषक:- भूमिहीन कृषक से तात्पर्य ऐसे कृषक से है जिसके परिवार के किसी सदस्य के नाम पर कोई कृषि भूमि न हो और वह किसी अन्य व्यक्ति के स्वमित्व की भूमि पर कृषि करता हो।
(छ) छोटा कृषक:- छोटा कृषक से तात्पर्य ऐसे किसान से है जो स्वयं की भूमि स्वामी स्वत्व की कुल एक हेक्टेयर तक असिंचित या 0.50 हेक्टेयर सिंचित भूमि धारण करता हो।
(ज) कृषि मजदूर:- कृषि मजदूर से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसकी अपनी कोई कृषि भूमि न हो और जो अन्य व्यक्ति की कृषि भूमि पर मजदूरी करता हो।
(झ) सेवाभूमि कोटवार:- सेवाभूमि कोटवार से वही तात्पर्य है जैसा कि छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 में परिभाषित है।
(ञ) भूमिहीन परिवारः- भूमिहीन परिवार से तात्पर्य गैर कृषक विस्थापित परिवार से है।
3. भूमि मकान आदि का अधिग्रहण:-
3.1 भू-अर्जन अधिनियम के प्रयोजन के लिए लोक प्रयोजन के दायरे में उन परियोजनाओं को माना जाएगा जिन्हें राज्य सरकार इस हेतु मान्यता दे। इनमें अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ पुनर्वास, रक्षा रेल, सड़क परिवहन, शिक्षा सिंचाई, बिजली उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन, खनिज उत्पादन, जैसी परियोजनाएं शामिल होंगी।
3.2 परियोजनाओ का सामान्यत: निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभक्त किया जाएगा:-
(1) ऐसी परियोजनाएं जिनमें प्रभावित व्यक्तियों की पुनर्बसाहट आवश्यक न हो।
(2) ऐसी परियोजनाएं जिनमें प्रभावित व्यक्तियों की पुनर्बसाहट आवश्यक हो।
3.3 परियोजनाओं के लिए आवश्यक निजी भूमि तथा वन भूमि प्रचलित अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार प्राप्त की आएगी। शासकीय राजस्व भूमि का हस्तांतरण /आबंटन राज्य शासन के तत्समय प्रभावशील स्थाई आदेशों /निर्देशों के अधीन किया जाएगा।
3.4 परियोजना के लिए आवश्यक भूमि अधिग्रहित करने के लिए राजस्व तथा वन भूमि में कोई विभेद नहीं किया जाएगा, किन्तु वनाच्छादिन/वृक्षारोपण वाली भूमि को यथासंभव अधिग्रहण से मुक्त रखने का प्रयास किया जाएगा।
3.5 किसी परियोजना के लिए भूमि तथा सम्पत्ति का अधिग्रहण करते समय इस नीति के अनुरूप विस्थापितों के पुनर्वास की योजना भी सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत की जाएगी।
3.6 परियोजना के लिए भू-अर्जन का प्रस्ताव करने वाले विभाग/संस्थान द्वारा परियोजना से विस्थापित व्यक्तियों का इस नीति के अनुरूप पुनर्वास करने के लिए एक पुनर्वास योजना बनाई जाएगी और अनुमोदित पुनर्वास योजना के क्रियान्वयन हेतु परिशिष्ट-तीन के प्रारूप में विभाग/संस्थान तथा जिला कलेक्टर के मध्य एक मेमोरेन्डम आफ अन्डरस्टैंडिंग (एम.ओ.यू.) हस्तांक्षरित किया जाएगा।
3.7 अनुमोदित पुनर्वास योजना के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्वास कार्य की मॉनिटंरिंग /निगरानी इस प्रयोजन हेतु गठित जिला स्तरीय तथा राज्य स्तरीय निगरानी समितियों द्वारा की जाएगी।
3.8 किसी परियोजना के लिए भू-अर्जन का प्रस्ताव प्राप्त होने पर विस्थापित व्यक्तियों को शीघ्रताशीघ्र विधि सम्मत मुआवजा तथा अन्य सुविधाएं देने के लिए परियोजना क्षेत्र से सभी संबंधित भू-अभिलेखों को एक कार्यक्रम बनाकर अद्यतन किया जाएगा।
3.9 शासकीय राजस्व भूमि तथा वन भूमि के अतिक्रमण को भी पुनर्वास के प्रयोजनों के लिए पात्र माना जाएगा, बशर्ते की उसका राज्य/केन्द्र सरकार द्वारा परियोजना की स्वीकृति देने की तारीख से कम से कम 3 वर्ष पूर्व से शासकीय भूमि पर सतत् अधिपत्य रहा हो।
3.10 ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति की 75 प्रतिशत भूमि अधिग्रहीत की गई हो, या किसी ग्राम का अन्त क्षेत्र पानी से घिर जाए वहां यदि प्रभावित व्यक्ति ऐसा चाहें तो संबंधित विभाग/परियोजना द्वारा ऐसे क्षेत्र की सम्पूर्ण अधिग्रहीत करने का प्रयास किया जाएगा।
3.11 विस्थापित होने वाले परिवारों को उनके निवास हेतु प्लाट या मकान दिया जाएगा जिसके लिये आवश्यक भूमि का चयन भू-अर्जन की योजना तैयार करते समय ही पुनर्वास योजनानुसार विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास हेतु आवश्यक भूमि भी साथ-साथ अर्जित की जाएगी।
3.12 भूमिहीन व्यक्तियों को भी यथा संभव परियोजना क्षेत्र के आसपास ही बसाया जाएगा। ताकि वे परियोजना के क्षेत्र में विकास का लाभ अपने जीवन यापन हेतु कर सके।
3.13 परियोजना से विस्थापित परिवारों के लिए वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था कण्डिका-7 के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी।
4. अधिग्रहित सम्पत्ति का मुआवजा:-
4.1 भूमि का मुआवजा:-
4.1.1 जिन विस्थापित काश्तकारों की भूमि अधिग्रहित की जाती है उन्हें:-
(क) राज्य शासन की परियोजनाओं के मामलों में शासकीय भूमि उपलब्ध होने पर निजी भूमि के बदले शासकीय भूमि उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसा संभव न होने पर भूमि के बदले मुआवजा दिया जाएगा।
(ख) निजी संस्थानों की परियोजनाओं के मामले में अधिग्रहित निजी भूमि के लिये मुआवजा दिया जाएगा।
4.1.2 शासकीय अतिक्रमित भूमि के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। किन्तु जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा पर अनुसूचित क्षेत्रों में 1990 के पूर्व के अतिक्रामकों को भूमि आबंटित की जाएगी।
4.1.3 डूब से प्रभावित क्षेत्रों में भूमि की कीमते प्राय:दबी हुई रहती है। अतएव ऐसी परियोजनाओं के डूब क्षेत्र के लिए अर्जित की जाने वाली कृषि भूमि आबादी प्लाटों आदि का मुआवजा समीपवर्ती सिंचाई क्षेत्र (कमाण्ड) की भूमि के क्रय-विक्रय के आंकडों के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।
4.1.4 नगरीय आबादी प्लाटों तथा अन्य नगरीय भूमि का मुआवजा डूब क्षेत्र के बाहर निकटवर्ती क्षेत्र में उसी क्षेत्र में नगरीय भूमि का औसत बिक्री दरों को आधार मानकर किया जाएगा।
4.1.5 सुदूर स्थित क्षेत्रों में और विशेष रूप से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अधिग्रहीत किए जाने वाली भूमि के वास्तविक बाजार मूल्य के आंकलन के लिए भूमि के क्रय-विक्रय के पर्याप्त व वर्तमान कालावधि के आंकडे नहीं मिल पाते हैं। अतएव:-
(क) वाणिज्यिक तथा औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन के मामलों में भू-अर्जन अधिनियम के तहत निर्धारित मुआवजे के अतिरिक्त इतनी राशि और भूगतान की जाएगी कि भूमि स्वामी को प्राप्त होने वाली न्यूनतम कुल राशि पड़त भूमि हेतु रूपये 50,000/- प्रति एकड़, असिंचित (एक फसली) भूमि हेतु रूपये 75,000/-प्रति एकड़ एवं सिंचित (दो फसली) भूमि हेतु रूपये 1,00,000/- हो जाए।
(ख) शासकीय परियोजनाओं के लिये भू-अर्जन के मामलों में भू-अर्जन अधिनियम के तहत निर्धारित मुआवजे के अतिरिक्त इतनी राशि और भुगतान की जाएगी कि भूमि स्वामी को प्राप्त होने वाली न्यूनतम कुल राशि पड़त भमि हेतु रूपये 30,000/- प्रति एकड, असिंचित (एक फसली) भूमि हेतु रूपये 45,000/- प्रति एकड तथा सिंचित दो (फसली भूमि) हेतु रूपये 60,000/- प्रति एकड़ हो जाए। यदि शासकीय भूमि उपलब्ध हो तो शासकीय परियोजनाओं के विस्थापित भू-स्वामियों को भूमि के बदले भूमि का विकल्प भी उपलब्ध होगा।
(ग) यदि भू-अधिनियम की धारा-4 की धारा (1) के अनुसार अधिसूचना जारी होने के दिनांक को कलेक्टर द्वारा मुद्रांक शुल्क भुगतान के प्रयोजन के लिये निर्धारित की गई गाईड लाईन दर भू-अर्जन अधिनियम के अन्तर्गत परिगणित बाजार मूल्य से अधिक हो तो भू-धारक को देय न्यूनतम राशि की गणना धारा 4(1) की अधिसूचना के प्रकाशन के दिनांक को प्रचलित गाईड लाईन दर अथवा उपरोक्त (क) अथवा (ख) में से जो भी अधिक हो, उसके आधार पर की जाएगी।
4.1.6 कोटवार को सेवा भमि का मुआवजा देय नहीं होगा, किन्तु भूखंड आबंटन एवं अन्य सुविधाएं अन्य विस्थापितों की भांति प्राप्त करने की पात्रता होगी।
4.2 वृक्षों का मुआवजा:-
अधिग्रहित निजी भूमि पर स्थित फलदार वृक्षों का मूल्य उनसे प्राप्त होने वाली वार्षिक आय एवं लकडी के मूल्य आदि के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। अन्य वृक्षों का मूल्य अर्जित भूमि पर स्थित वृक्षों की लकड़ी के आधार पर आंका जाएगा।
4.3 मकान एवं सम्पत्ति का मुआवजा:-
4.3.1 अन्य सम्पत्तियों जैसे मकान, कुआँ, निजी बाडी़, अन्य निर्माण जैसी सम्पत्ति का मूल्य उसे वैसी ही हालत में फिर से उपलब्ध कराने के लिये आवश्यक व्यय के बराबर आंका जाएगा।
4.3.2 अतिक्रमण विस्थापितों के मामले में केवल अतिक्रमित भूमि पर बने मकानों के लिए हीं मुआवजा दिया जाएगा। किन्तु अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा पर वर्ष 1990 के पूर्व के अतिक्रामकों से प्राप्त की गई भूमि पर के अन्य निर्माण कार्यो के लिए भी मुआवजा दिया जाएगा।
5. विस्थापितों को कृषि भूमि आबंटन:-
5.1 राज्य शासन की परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से प्रभावित ऐसे विस्थापित परिवारों जिनके जोत की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि अर्जित की जाती है को शासकीय भूमि उपलब्ध होने की स्थिति में परियोजना के क्षेत्र के आसपास शासकीय भूमि आबंटित करने का प्रयास किया जाएगा।
5.2 शासकीय परियोजनाओं के जिन मामलों में मुआवजें के बदले भूमि आबंटन किया जाएगा उनमें भूमि विकास के लिए रूपये 10,000/- (रूपये दस हजार) प्रति एकड़ की दर पर अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाएगा।
5.3 आबंटित भूमि में कुंआ, नलकूप या अन्य साधनों से सिंचाई के लिये विस्थापित परिवारों को शासन द्वारा विद्यमान योजनाओं के तहत सहायता दी जाएगी। यदि नई भूमि ऐसे स्थान पर स्थित है जहां सिंचाई सुविधा न होने के तथ्य को कृषि विभाग द्वारा प्रमाणित किया जाए वहां शासन की विद्यमान योजनाओं के तहत सहायता दी जाए।
5.4 कोटवार को सेवा भूमि का कोई मुआवजा देय नहीं होगा किन्तु भू-खण्ड आबंटन एवं अन्य सुविधाएं अन्य विस्थापितों की भांति प्राप्त करने की पात्रता होगी।

 

6. विस्थापितों को भू-खण्ड आबंटन:-
6.1 ग्रामिण क्षेत्रों में प्रत्येक विस्थापित परिवार को निम्नानुसार नि:शुल्क वैकल्पिक भू-खण्ड उपलब्ध कराया जाएगा:-
(1) भूमिहीन परिवार 300 वर्गमीटर
(2) लघु/सीमान्तक कृषक परिवार 450 वर्गमीटर
(3) अन्य कृषक परिवार 600 वर्गमीटर
6.2 नगरीय विस्थापित परिवारों का पुनर्वास नए नियोजित नगरीय क्षेत्रों में किया जाएगा। इस कार्य के पूर्व स्थानीय निकायों (नगर निगम, नगर पालिका परिषद, नगर पंचायत) से परामर्श लिया जाएगा। जहां आवश्यकता हो छ.ग. गृह निर्माण मण्डल अन्य एजेंन्सी से भू-खण्डों के विकास एवं भवनों के निर्माण के लिए विशेष योजनाएं हाथ में ली जाएंगी।
6.3 नगरीय क्षेत्रों के विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए निम्नलिखित आकारों के भूखण्ड बनाए जाएंगे:-
(1) कम आय वर्ग 95 वर्गमीटर
(2) अल्प आय वर्ग 140 वर्गमीटर
(3) मध्यम आय वर्ग 280 वर्गमीटर
(4) उच्च आय वर्ग 420 वर्गमीटर
6.4 किसी विस्थापित परिवार को आय के आधार पर उपर्युक्त विर्निदिष्ट न्यूनतम आकार के भूखण्ड अथवा उसके अर्जित किए गए भूखण्ड के आधार पर भूखण्ड की पात्रता होगी। इस अवधारणा के अन्तर्गत विस्थापित परिवार को उसके विद्यमान भूखण्ड के आकार से बडे आकार का वह भूखण्ड पाने की पात्रता होगी जो कि उपरोक्त 4 प्रकार के मानक भूखण्डों में आता हो। उदाहरणार्थ यदि किसी मध्यम आय वर्ग के व्यक्ति द्वारा धारित वर्तमान भूखण्ड का आकार 200 वर्गमीटर है जो उसे नये स्थान पर 280 वर्गमीटर भूखण्ड पाने की पात्रता होगी।
6.5 यदि कोई विस्थापित परिवार उपरोक्त पात्रता के अनुसार मिलने वाले आकार के भूखण्ड से बड़े आकार का भूखण्ड चाहे तो उपलब्धता के आधार पर अतिरिक्त मूल्य भुगतान कर प्राप्त कर सकेगा।
6.6 सभी वर्ग के भूखण्डों की मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया एक समान होगी। मुल्य का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होगा। यदि नए भूखण्ड की दर विस्थापितों से अधिग्रहित भूखण्ड के मुआवजे की दर से अधिक हो तब अन्तर की राशि परियोजना द्वारा दी जाएगी।
6.7 नए स्थान में भूखण्ड आबंटन हेतु एक परिवार एक भूखण्ड का सिद्धांत अपनाया जाएगा।
6.8 नए भवन निर्माण हेतु हुडको एवं अन्य संस्थाओं से ऋण उपलब्ध कराने हेतु प्रयास किया जाएगा।
6.9 जिन विस्थापित परिवारों के वाणिज्यिक/व्यवसायिक भवन अधिग्रहित हो उन्हें परियोजना द्वारा विस्थापितों के लिये नई बसाहटों में आवश्यकतानुसार वाणिज्यिक/व्यवसायिक भूखण्ड विकसित कर कोई लाभ नहीं, हानि नहीं के आधार पर उपलब्ध कराए जाएंगे।
6.10 यथा संभव नव स्थापित आदर्श ग्राम एवं नगरों का नाम पुराने ग्राम एवं नगरों के नम पर हीं किया जाएगा ताकि भावनाओं को बनाए रखा जा सके। नाम के आगे केवल नया (न्यू) शब्द जुड जाएगा, जैसे रामनगर में न्यू रामनगर।
7. रोजगार तथा अन्य सुविधाएं:-
7.1 रोजगार की पात्रता ऐसे प्रत्येक विस्थापित परिवार को होगी जो भू-अर्जन अधिनियम की धारा 4 (1) की अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख के तीन वर्ष पूर्व से स्वतंत्र रूप से या संयुक्त परिवार के रूप मे अधिगृहित भूमि के भूमि स्वामी या पट्टेदार रहे हों। वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से प्रभावित ऐसे विस्थापित परिवारों जिनकी 75 प्रतिशत से अधिक भूमि अर्जित हो, के एक सदस्य को तथा औद्योगिक/खनन परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से प्रभावित प्रत्येक विस्थापित परिवार के एक सदस्य को उनकी अर्हता तथा उपर्युक्तता के अनुसार परियोजना का क्रियान्वयन करने वाली एजेन्सी/संस्थान द्वारा रोजगार की व्यवस्था की जाएगी।
(अ) परियोजना के कार्यो में रोजगार देते समय परियोजना विस्थापित परिवारों को प्राथमिकता दी जाएगी।
(ब) परियोजना मे पात्र शिक्षित नवयुवकों को बेहतर रोजगार के लिए उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
(स) शासकीय विभाग/सार्वजनिक उपक्रम की परियोजना के लिए भू-अर्जन से विस्थापित ऐसे व्यक्तियों जिन्हें रोजगार की पात्रता हो, की श्रेणी-3 के पदों पर नियुक्ति हेतु आयु सीमा में 2 वर्ष की छूट दी जाएगी।
(द) परियोजना से विस्थापित परिवारों को लाभजनक कार्य उपलब्ध कराने के लिये आवश्यक प्रशिक्षण देने के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी।
(इ) डूब से प्रभावित क्षेत्रों के मछुआरों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाएगी। यदि परियोजना में मछली पालन के अवसर हों तो डूब से प्रभावित व्यक्तियों की समिति को मछली पालन के ठेके में प्राथमिकता दी जाएगी।
(फ) औद्योगिक/खनन परियोजना के विस्थापित परिवारों को रोजगार की व्यवस्था निम्नलिखित प्राथमिकता क्रम में दी जाएगी:-
(i) जिनकी शत प्रतिशत कृषि भूमि तथा घर अधिग्रहीत हुए हों,
(ii) जिनकी शत प्रतिशत कृषि भूमि अधिग्रहीत हुई हों, जिनकी 75 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि अधिग्रहीत हुई हों,
(iii) जिनकी 50 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि अधिग्रहीत हुई हों,
(iv) जिनकी 25 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि अधिग्रहीत हुई हों,
(v) अन्य विस्थपित परिवार।
(ज) यदि वाणिज्यिक/औद्योगिक/खनन परियोजना तथा उससे संबद्ध कार्य कलापों में नियमित रोजगार के अवसर रोजगार के लिये पात्र विस्थापित परिवारों की संख्या कम हों तो उन्हें निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध होंगेः-
(1) विस्थापित परिवारों के एक सदस्य को मुआवजे के अतिरिक्त परियोजना क्षेत्र अथवा परियोजना क्षेत्र से लगी हुई अथवा निकटस्थ विकासखण्ड मुख्यालय अथवा नगर पंचायत/नगर पालिका क्षेत्र में (उसकी इच्छानुसार) पक्की दुकान निर्मित करके दी जाएगी जिसका सम्पूर्ण व्यय कम्पनी द्वारा वहन किया जाएगा। जनपद पंचायत मुख्यालय/नगर पंचायत मुख्यालय/नगर पालिका क्षेत्र में कम्पनी को कलेक्टर द्वारा बिक्री की दरों के आधार पर भूमि आबंटित की जाएगी जिस पर कम्पनी द्वारा पक्की दुकानों का निर्माण किया जाकर विस्थापितों को आबंटित किया जाएगा।
(2) जो विस्थापित परिवार वैकल्पिक रोजगार के लिए परियोजना में उपयोग होने वाले कच्चे माल या परियोजना के उत्पाद की ढुलाई से संबंधित परिवहन व्यवसाय या यात्री परिवहन में स्वरोजगार हेतु विकल्प दें, उन्हें परियोजना से संबंधित परिवहन ठेकों में संस्थान द्वारा प्राथमिकता दी जाएगी तथा इस हेतु परिवहन यान उपलब्ध कराने में सहायता दी जाएगी।
7.2 विस्थापित परिवारों के ऐसे सदस्यों को, जिन्हें परियोजना में रोजगार प्राप्त करने की पात्रता हो किन्तु वे आवश्यक तकनीकी अर्हता नहीं रखते हों उन्हें उनकी शैक्षणिक योग्यतानुसार आवश्यक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था वृहद परियोजनाओं के मामलों में संबंधित संस्थान द्वारा तथा अन्य मामलों में संबंधित शासकीय विभाग/संस्थान द्वारा की जाएगी। प्रशिक्षण की व्यवस्था राज्य शासन की उपलब्ध प्रशिक्षण सुविधाओं का उपयोग करते हुए अथवा स्वतंत्र रूप से, जहां जैसा संभव हो, की जाएगी।
7.3 परियोजना से प्रभावित अन्य व्यक्तियों, विशेषकर भूमिहीन व्यक्तियों, को शासन के संबंधिन विभागों द्वारा नए कौशल बढ़ाने हेतु प्रशिक्षण दिया जाएगा तथा छोटे कार्यों में रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास किये जाएंगे। परियोजना से उत्पन्न होने वाले रोजगार के अवसरों में ऐसे व्यक्तियों को कार्य दिया जाएगा।
7.4 विस्थापित परिवारों को राज्य शासन द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली स्वरोजगार मूलक योजनाओं (डेयरी विकास, मुर्गीपालन, मतस्य पालन, लघु कुटीर उद्योग आदि) के लिए चिन्हित कर उन्हें वित्तीय संस्थाओं से ऋण की व्यवस्था करते हुए लाभान्वित करने के प्रयास किये जाएंगे।
7.5 शासकीय परियोजनाएं जैसे सिंचाई परियोजनाएं, सडक परियोजनाएं, स्कूल परियोजनाएं अथवा अस्पताल की परियोजनाएं जनकल्याणकारी होती है। उनमें रोजगार के अवसर प्राय: नहीं होतें हैं, इसलिये शासकीय परियोजनाओं के विस्थापित व्यक्तियों को रोजगार देने की आवश्यकता नहीं होगी परन्तु उन्हें शासकीय/अर्द्धशासकीय संस्थाओं में रोजगार देने मे प्राथमिकता देने के विधि सम्मत प्रावधान किये जाएंगे।
7.6 परियोजना के क्षेत्र में कार्यरत स्वसहायता समूहों को उद्योग स्थापना से निर्मित होने वाले कार्यकलापों/गतिविधियों में जोड़ने के लिए पहल की जाएगी। इस हेतु संबंधित विभाग/संस्थान द्वारा कार्यशालाओं का आयोजन/प्रशिक्षण व्यवस्था के लिये कदम उठाए जाएंगे।
8. विस्थापितों को विविध सहायता:-
8.1 पुनर्स्थापित किये जाने वाले प्रत्येक विस्थापित परिवार को रूपये 11,000/- (रूपये ग्यारह हजार) की एकमुश्त सहायता राशि पुनर्स्थापन अनुदान के रूप में दी जाएगी जिसे समय-समय पर बढ़ाया जा सकेगा।
8.2 पुनर्स्थापना योजना अनुसार विस्थापित परिवारों तथा उनके मवेशियों को अधिग्रहित क्षेत्र से नई जगह ले जाने का कार्य जिला प्रशासन की देख-रेख में सम्पादित किया जाएगा। जिस पर होने वाले व्यय का वहन परियोजना द्वारा किया जाएगा। यदि विस्थापित परिवार परियोजना द्वारा की गई पविहन व्यवस्था का लाभ प्राप्त नहीं करता है तो उसे रूपये 1,000/- (रूपये एक हजार) की राशि का एक मुश्त अनुदान दिया जाएगा, जिसे समय-समय पर बढ़ाया जा सकेगा।
8.3 ग्रामीण क्षेत्रों में विस्थापितो के लिए नई बसाहट के क्षेत्र में सार्वजनिक मूलभूत सुविधाए उपलब्ध कराने के लिये राज्य शासन की सुसंगत योजनाओं के तहत प्राथमिकता पर धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।
8.4 नगरीय क्षेत्रों के ऐसे विस्थापित जो मूल स्थान पर अपना व्यवसाय/व्यापार किराए के भवन में कर रहें हों को नई नगरीय बसाहटों में बनी दुकानों को किराए पर देने में प्राथमिकता दी जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे विस्थापित व्यक्ति जो व्यवसायिक भूखण्ड पाने के इच्छुक हों उन्हें निर्धारित शर्तो पर उचित भू-खण्ड/दुकान उपलब्ध करानें में प्राथमिकता दी जाएगी।
8.5 जो व्यक्ति मात्र कब्जेदार है उसे पुनर्बसाहट की स्थिति में नई बसाहट में आबादी जमीन दी जाएगी और साथ में पुनर्वास अनुदान भी दिया जाएगा। बशर्ते वह धारा-4 की अधिसूचना के प्रकाशन से कम से कम तीन वर्ष पूर्व से या वैध किराएदार के रूप में न्यनतम एक वर्ष पूर्व से रह रहा हो।
8.6 विस्थापित परिवारों में से यदि कोई स्वरोजगार हेतु उद्योग स्थापित करना चाहे तो उन्हें निकटस्थ औद्योगिक क्षेत्र में भू-आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी।
8.7 प्रभावित क्षेत्रों के समीप क्रियान्वित की जाने वाली योजनाओं में वाणिज्यिक भू-खण्ड दुकानें इत्यादि के आबंटन में प्रभावित परिवारों को समुचित प्राथमिकता दी जाएगी।
8.8 विभिन्न गतिविधियों के लिये पुनर्बसाहट हेतु स्थापित नये नगरीय क्षेत्रों को नियोजन करते समय अनौपचारिक मांग, प्रकार, सुविधा, उपयोगिता, दूरी एवं आवागमन के साधनों आदि पर यथोचित ध्यान दिया जाएगा।
8.9 डूब/विस्थापित क्षेत्रों में स्थित धार्मिक स्थल जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च पुरातत्व महत्व के स्थल आदि के एवज में नये क्षेत्रों में उनके नवनिर्माण तथा कब्रगाह व दाह संस्कार हेतु स्थल के लिये आवश्यक प्रावधान रखा जाएगा।
8.10 परियोजना के विस्थापित परिवारों को परियोजना के अस्पताल में चिकित्सा सुविधा तथा उनके बच्चों को परियोजना के स्कूल में प्रवेश की सुविधा नामिनल/रियायती शुल्क पर उपलब्ध कराई जाएगी।
8.11 अनुसूचित क्षेत्रों में जीवन निर्वाही अर्थव्यवस्था बनी हुई है। विकास के दीर्घकालीन आयोजन में इस बात पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा कि खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता बनी रहें।
8.12 अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति के विस्थापित परिवारों को जो सुविधाएं फिलहाल अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास विभाग के कार्यक्रमों के अन्तर्गत मिल रही है, उन्हें नई जगह पर यथावत रखा जाएगा।
9. सलाहकार समितियॉ:-
9.1 परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्स्थापना की पुनर्वास योजना का अनुमोदन संबंधित प्रशासकीय विभाग द्वारा भू-अर्जन के लिए अनुमति देते समय किया जाएगा।
9.2 विकास परियोजनाओं से प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्स्थापना की पुनर्वास योजनाओं का पर्यवेक्षण एवं मानिटरिंग निम्नलिखित समितियों द्वारा की जाएगी।
9.2.1 ऐसी परियोजनाएं, जिनकी लागत 100 करोड़ से अधिक हो का राज्य स्तरीय पुनर्वास समिति द्वारा
9.2.2 ऐसी परियोजनाएं जिनकी लागत 100 करोड़ से कम हो, का जिला स्तरीय पुनर्वास समिति द्वारा।
9.3 राज्य स्तरीय तथा जिला स्तरीय पुनर्वास समितियों का गठन परिशिष्ट-एक अनुसार किया जाएगा।
10. पुनर्वास योजना की रूपरेखा अनुमोदन की प्रक्रिया आदि:-
10.1 शासकीय परियोजनाओं के मामलों में संबंधित विभागाध्यक्ष सार्वजनिक उपक्रमों की परियोजनाओं के मामले में संबंधित उपक्रम तथा निजी संस्थानों की परियोजनाओं के मामले मे संबंधित संस्थान द्वारा परियोजना के लिय भू-अर्जन से विस्थापित परिवारों के पुनर्वास हेतु एक ''पुनर्वास योजना'' तैयार की जाएगी जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ परिशिष्ट-दो में उल्लेखित विवरण होंगे। पुनर्वास योजना तैयार करने के लिये अर्जित की जाने वाली भूमि उसके भूमिस्वमियों/पट्टेदारों भू-अर्जन से प्रभावित परिवारों तथा अन्य आवश्यक विवरण एकत्रित करने के लिये संबंधित विभाग/संस्थान द्वारा अनुरोध किये जाने पर जिला कलेक्टर द्वारा सहयोग/सहायता दी जाएगी।
10.2 यथास्थिति विभागाध्यक्ष, सार्वजनिक उपक्रम या निजी संस्थान पुनर्वास योजना सहित अपना भू-अर्जन प्रस्ताव औद्योगिक परियोजनाओं के मामलों में राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड/जिला निवेश प्रोत्साहन समिति के कार्यालय में तथा अन्य परियोजनाओं के मामलों में राज्य शासन के संबंधित प्रशासकीय विभाग/जिला कलेक्टर को प्रस्तुत करेगा।
10.3 राज्य शासन का संबंधित प्रशासकीय विभाग पुनर्वास योजना का परीक्षण करेगा और यह देखेगा कि पुनर्वास योजना आदर्श पुनर्वास नीति के अनुरूप तैयार की गई है और उसमें आवश्यक आर्थिक तथा सामाजिक पहलुओं का समावेश किया गया है। पुनर्वास योजना के अनुरूप बनाने के लिये उसमें प्रशासकीय विभाग उसे आदर्श पुनर्वास नीति के अनुरूप बनाने के लिये उसमें विभागाध्यक्ष/सार्वजनिक उपक्रम/निजी संस्थान से आवश्यक संशोधन कराएगा और उसे संबंधित जिले के कलेक्टर को भेजेगा।
10.4 ऐसे मामलों जिनमें भूमि अधिग्रहण के कारण आबादी की पुनर्बसाहट आवश्यक हो, उनमें प्रशासकीय विभाग से प्राप्त पुनर्वास योजना जिला कलेक्टर द्वारा संबंधित स्थानीय संस्था (ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद, नगर निगम) को निम्नानुसार उपलब्ध कराई जाएगी जो उसे सर्वसाधारण की जानकारी के लिए प्रकाशित करेंगें:-
(i) अनुसूचित क्षेत्रों के मामले में पंचायत विशेष उपबन्ध (अनुसूचित क्षेत्रों मे विस्तार) अधिनियम के प्रावधानों के तहत ग्राम सभाओं के परामर्श के समय।
(ii) गैर अनुसूचित क्षेत्रों में भू-अर्जन अधिनियम की धारा-4 के अन्तर्गत अधिसूचना के प्रकाशन के समय।
10.5 उपर्युक्त पैरा 10.4 की अपेक्षानुसार पुनर्वास योजना का प्रकाशन होने पर प्रभावित व्यक्ति संबंधित जिले के कलेक्टर को सुझाव दे सकेंगे। जिला कलेक्टर द्वारा प्राप्त सुझावों का आदर्श पुनर्वास नीति के प्रावधानों के परिपेक्ष्य में परीक्षण किया जाएगा और जिला स्तरीय समिति के समक्ष रखकर समिति के सुझाव प्राप्त किये जाएंगे।
10.6 उपर्युक्त पैरा 10.5 के तहत प्रभावित व्यक्तियों से प्राप्त सुझावों के संबंध में जिला पुनर्वास समिति के अभिमत सहित जिला कलेक्टर पुनर्वास योजना को संबंधित प्रशासकीय विभाग को भेजेगा। सार्वजनिक उपक्रम/निजी संस्थान की परियोजनाओं के मामलों में जिला कलेक्टर द्वारा राज्य शासन को भेजे गए अभिमत की एक प्रति सार्वजनिक उपक्रम/निजी संस्थान को भी उपलब्ध कराई जाएगी।
10.7 प्रभावित व्यक्तियों के सुझावों तथा उन पर जिला स्तरीय समिति के अभिमत पर विचारोपरान्त संबंधित प्रशासकीय विभाग शासकीय परियोजना के मामले मे स्वयं तथा सार्वजनिक उपक्रम एवं निजी संस्थान की परियोजना के मामले में यथास्थिति सार्वजनिक उपक्रम या निजी संस्थान से पुनर्वास योजना में समुचित संशोधन करने/कराने के उपरान्त उसका अनुमोदन करेगा तथा अनुमोदित पुनर्वास योजना की प्रतियॉ संबंधित जिला कलेक्टर तथा विभागाध्यक्ष/सार्वजनिक उपक्रम/निजी संस्थान को भेजेगा।
10.8 अनुमोदित पुनर्वास योजना प्राप्त होने पर कलेक्टर भू-अर्जन अधिनियम के अन्तर्गत अग्रिम कार्यवहियां करने के लिए अग्रसर होगा और भू-अर्जन अधिनियम/नियमों का पालन करते हुए भू-अर्जन सम्पन्न करेगा।
10.9 भू-अर्जन की कार्यवाही के प्रचलन के दौरान प्रभावित ग्राम/ग्रामों के निवासियों अथवा उनके संगठनों द्वारा परियोजना के संबंध में जानकारी चाहे जाने पर उन्हें चाही गई जानकारी जिला कलेक्टर के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। यदि किसी कारण से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती हो तो आवेदक को उसका कारण संसूचित किया जाएगा।
10.10 राज्य अथवा संघ के किसी कानून के अन्तर्गत लोक प्रयोजन के लिए किसी भूमि के आवश्यक होंने संबंधी घोषणा तथा भू-अर्जन अधिनियम के अन्तर्गत जारी की जाने वाली विभिन्न अधिसूचनाओं/सूचनाओं का प्रकाशन विधि में विहीत स्थानों के अतिरिक्त स्थानीय निकायों/ग्राम पंचायतों के सूचना पटल पर भी किया जाएगा।
10.11 जिन मामलों में आबादी भूमि प्रभावित होती हो और पुनर्बसाहट आवश्यक हो, पुनर्बसाहट की योजना उन परिवारों जिनकी पुनर्बसाहट की जानी हो, से परामर्श करके तैयार की जाएगी। पुनर्बसाहट योजना के क्रियान्वयन का कार्यक्रम उस प्रकार निर्धारित किया जाएगा कि प्रभावित परिवार आबादी के अधिग्रहण के पूर्व नई बसाहट में पुनर्वासित हो जाए।
10.12 पुनर्वास योजना से संबंधित विवादो तथा हितकारी व्यक्ति की पहचान, उन्हें मिलने वाले फायदे आदि का निराकरण यथासंभव जिला स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। जिला स्तरीय समिति राज्य स्तरीय समिति से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकेगी।
10.13 बार-बार विस्थापन नहीं किया जाएगा और यदि अपवाद स्वरूप ऐसा करना आवश्यक हो तो ऐसा करने के लिए राज्य स्तरीय समिति का अनुमोदन प्राप्त किया जाएगा।
11. कतिपय परियोजनाओं के लिए विशिष्ट प्रावधान :-
विभिन्न परियोजनाओं की विशिष्ट स्थितियों को ध्यान में रखते हुए उपर बताए गए सिध्दान्तों और कार्यवाहियों के दायरे को प्रभावित किये बिना, कुछ विशिष्ट श्रेणियों की परियोजनाओं और उनकी प्रक्रियाओं के संबंध में निम्नलिखित दिशा निर्देशों का भी पालन किया जाएगा:-
11.1 सिंचाई/पनबिजली परियोजनाएं:-
11.1.1 जहां संभव होगा वहां जलाशय और उससे लगे हुए क्षेत्र के सघन विकास की योजना बनाई जाएगी, जिसमें उद्वहन सिंचाई के आधार पर कृषि और वृक्ष कृषि, मतस्य आखेट कार्यक्रमों का समावेश कर उस अंचल की धारण क्षमता में वृध्दि की जाएगी।
11.1.2 जलाशयों में पानी घटने पर उनसे निकलने वाली जमीन का अस्थायी आबंटन अपनी जमीन खोने वाले प्रभावित व्यक्ति को व्यक्तिगत खेती के लिये प्राथमिकता पर किया जाएगा प्रभावित व्यक्तियों की सहकारी समिति को मत्स्याखेट के मामले में प्राथमिकता व उचित रियायत दी जाएगी।
11.1.3 परियोजना निर्मित होने पर डूब क्षेत्र की ऐसी भूमि, जो वर्षा के बाद स्वत: खाली हो जाती है विस्थापित व्यक्तियों को कृषि कार्य हेतु पट्टे पर आबंटित की जाएगी।
11.1.4 यदि डूब क्षेत्र के लोगों को दी जा रही भूमि में उस सिंचाई परियोजना की नहरों से सिंचाई नहीं की जा सकती है तो उनकी भूमि की सिंचाई के लिये पृथक से योजना तैयार कर सिंचाई व्यवस्था की जाएगी।
11.2 औद्योगिक/खनिज परियोजनाएं :-
11.2.1 वृहद औद्योगिक, विद्युत उत्पादन और उत्खनन परियोजनाओं के मामले में संबंधित परियोजना के प्रभावित क्षेत्र को रेखांकित किया जाएगा। परियोजना के प्रस्तावक संस्थान के लिये यह जरूरी होगा कि वे स्थानीय आवश्यकतानुसार परियोजना के प्रभाव क्षेत्र के विकास के लिये योजनाएं बनाकर क्रियान्वयन करें। इस हेतु संबंधित संस्थान तथा राज्य शासन के प्रशासकीय विभाग के मध्य परियोजना तथा परियोजना क्षेत्र की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हुई सहमति अनुसार प्रतिवर्ष संस्थान के शुध्द लाभ का निर्धारित प्रतिशत, जो आवश्यकतानुयार एक प्रतिशत से तीन प्रतिशत होगा, आबंटित/व्यय किया जाएगा।
11.2.2 परियोजना से प्रभावित कृषकों के मामले में अनियमित, आकस्मिक रोजगार या मजदूरी के रूप में काम के अवसरों को जिन्दगी बसर करने का वैकल्पिक आधार अथवा रोजगार नहीं माना जाएगा। परियोजना के नियमित पदो में राज्य की औद्योगिक नीति में राज्य के अर्हताप्राप्त निवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने संबंधी प्रावधानों के अनुपालन हेतु निम्नानुसार प्राथमिकताएं रखी जाएंगी:-
(i) परियोजना से प्रभावित व्यक्ति,
(ii) परियोजना के प्रभाव क्षेत्र के निवासी अन्य व्यक्ति,
(iii) राज्य में निवास करने वाले अन्य व्यक्ति।
11.2.3 औद्योगिक तथा खानन परियोजना का क्रियान्वयन करने वले संस्थान द्वारा निजी भूमि का कब्जा लेने के 2 वर्ष की कालावधि के भीतर (पहले परियोजना के निर्माण मे तथा परियोजना के चालू हो जाने के बाद परियोजना मे) रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो संस्थान द्वारा रोजगार के लिए पात्र प्रत्येक परिवार के एक व्यक्ति को अर्हता के अनुरूप दिये जाने वाले रोजगार से प्राप्त होने वाली राशि के समतुल्य राशि, या रोजगार गारंटी योजना के तहत देय राशि, जो भी अधिक हो, बगैर काम के तब तक भुगतान की जाएगी, जब तक कि नियमित रोजगार की व्यवस्था न हो जाए।
11.2.4 उपजाऊ मिट्टी एल्यूवियल सोयल रेत जैसे लघु खनिज बाहुल्य क्षेत्रों में तो कृषि एवं प्लान्टेशन के माध्यम से वहां के रहवासियों को आय के बहुत अच्छे स्त्रोत उपलब्ध है और ऐसे क्षेत्र आर्थिक विकास में बहुत आगे है। किन्तु कोयला और आयरन जैसे मुख्य खनिज धारित क्षेत्रों के खनन कार्य से स्थानीय रहवासियों और विशेष रूप से अनुसूचित क्षेत्रों के रहवासियों को खनिज की उत्पादन योजनाओं से बहुत कम लाभ मिल पाया है। कोयल और आयरन और खानें राज्य के अत्यन्त गरीब और पिछडे अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में स्थित है। अतएव गैर केप्टिव नई खनन परियोजनाओं के लिये भू-अर्जन/पुनर्स्थापन प्रस्तावों के साथ प्रस्तुत की जाने वाली पुनर्वास योजनाओं में यह प्रावधान अनिवार्यत: रखा जाएगा कि नई परियोजना से प्राप्त होने वाले खनिज का आवश्यकतानुसार एक पूर्व निर्धारित प्रतिशत अनुसूचित क्षेत्रों की औद्योगिक इकाईयों की कच्चे माल के आवश्यकता की पूर्ति हेतु उन्हें उपलब्ध कराया जाएगा।
11.2.5 यह सुनिश्चित किया जाऐगा कि लीज समाप्त होने के पश्चात् माईन क्लोजर प्लान के अनुसार खान क्षेत्र की भमि को यथासंभव उसकी मूल स्थिति में वापस लाया जाए। इस कार्य के लिए खनन कम्पनी अपनी आय का समुचित हिस्सा एक पृथक रिजर्व फन्ड (रेस्टोरेशन फन्ड) के रूप मे रखे।
11.2.6 चूंकि कोयला और लौह अयस्क का अधिकांश खनन कार्य भारत सरकार के उपक्रमों द्वारा किया जाता है, भारत सरकार से अनुरोध किया जाएगा कि वे सार्वजनिक क्षेत्र के खनन कम्पनियों को राज्य की पुनर्वास नीति का पालन करने के लिए कहें और आवश्यक होने पर इस हेतु केन्द्रिय कानूनों में आवश्यक संशोधन करें। पुनर्वास नीति के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक होने पर संविधान की अनुसूची 5 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अन्तर्गत राज्य के रेगुलेशन्स बनाए जा सकेगें।
11.3 अभ्यारण्य तथा राष्ट्रीय उद्यान परियोजना :-
11.3.1 अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के प्रबन्धन सहित वन संसाधनों के विकास और उपयोग के नियोजन में उन पर स्थानीय समाज की निर्भरता को खासतौर से आदिवासी समाज के उनसे परस्पर पोषक संबंधों को आधारभूत माना जाएगा। इस मामले में संबंधिन नागरिकों और उनकी अर्थव्यवस्था के बारे में तथ्यों का लिखित रूप से उपलब्ध होना या न होना उसकी औपचारिक मान्यता होना या न होनाउससे संबंधित अद्यतन कानूनी स्थिति से किसी तरह की विसंगति इत्यादि का कोई असर नहीं होगा।
11.3.2 इन परियोजनाओ में विस्थापितों की परंपराओं के अनुरूप सभी के लिये समुचित जीवन यापन के लिये पूरी व्यवस्था और पूरे वर्ष के कामकाज के लिये योग्य सभी व्यक्तियों के लिये एक विशेष रोजगार योजना बनाई जाएगी। विस्थापन योजना का यह उद्देश्य होगा कि वन में रहने वले सभी नागरिकों के लिये वन संसाधन राष्ट्रीय उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए तथा उसके पर्यावरणीय आकार को नुकसान पहुंचाए बिना बेहतर जीवन यापन की उनकी आकांक्षा पूरी करने में सक्षम आधार बनाया जा सकें।
12. विविध:-
12.1 भू-अर्जन के मामले निर्णित करनें हेतु विशेष न्यायालय स्थापित किये जाएंगे।
12.2 किसी शासकीय परियोजना के लिये भू-अर्जन/ हस्तांतरण द्वारा प्राप्त ऐसी सभी भूमि जो अधिग्रहण के बाद 10 वर्ष तक उपयोग मे नहीं लाई जाती है, वह भूमि राजस्व विभाग को स्वमेव वापस हो जाएगी और राजस्व विभाग राजस्व पुस्तक परिपत्र के प्रावधानों के अनुसार उसका अन्य प्रयोजन के लिए आबंटन या हस्तांतरण कर सकेगा।
12.3 पुनर्वास योजना से संबंधित समस्त खर्चों का वहन परियोजना का क्रियान्वयन करने वाले शासकीय विभाग या निजी संस्थान, जैसी भी स्थिति हों, द्वारा परियोजना में शामिल करते हुए वहन किया जाएगा।
12.4 राजधानी परियोजना क्षेत्र की पुनर्वास योजना पृथक से बनाई जाएगी।

 

परिशिष्ट एक
राज्य स्तरीय एवं जिला स्तरीय पुनर्वास समितियां निम्नानुसार गठित की जाएंगी :-
अ. राज्य स्तरीय पुनर्वास समिति :-
1. मुख्य मंत्री अध्यक्ष
2. नेता प्रतिपक्ष सदस्य
3. वित्त विभाग का भारसाधक मंत्री सदस्य
4. पुनर्वास विभाग का भारसाधक मंत्री सदस्य
5. राजस्व विभाग का भारसाधक मंत्री सदस्य
6. विधि विभाग का भारसाधक मंत्री सदस्य
7. परियोजना के प्रशासकीय विभाग का भारसाधक मंत्री सदस्य
8. संबंधित जिलों के जिला पंचायत अध्यक्ष सदस्य
9. राज्य शासन द्वारा प्रभावित क्षेत्र से नामांकित सांसद/विधायक सदस्य
10. मुख्य सचिव सदस्य
11. परियोजना के प्रशासकीय विभाग का प्रभारी सचिव सदस्य
12. परियोजना के प्रमुख अधिकारी विशेष आमंत्रित
13. राज्य पुनर्वास आयुक्त सदस्य सचिव
ब. राज्य स्तरीय पुनर्वास समिति :-
1. जिले के प्रभारी मंत्री अध्यक्ष
2. जिला पंचायत अध्यक्ष सदस्य
3. राज्य शासन द्वारा प्रभावित क्षेत्र से नामांकित सांसद/विधायक सदस्य
4. जिन ग्रामों में पुनर्बसाहट की जा रही है वहां के सरपंचगण सदस्य
5. परियोजना के प्रशासकीय विभाग का जिला अधिकारी/संबंधित विभाग का जिला प्रमुख सदस्य
6. परियोजना के प्रमुख अधिकारी विशेष आमंत्रित
7. जिला कलेक्टर सदस्य सचिव

 

परिशिष्ट दो
पुनर्वास योजना में पुनर्वास नीति को किसी भी प्रकार प्रभावित किये बिना अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित का समावेश किया जाएगा:-
1. सामान्य :- सभी पुनर्वास योजनाओं के लिए:-
1.1 परियोजना के उद्देश्य, बुनियादी मान्यताएं और कारक क्रियान्वयन की कालावधि का उल्लेख करते हुए विकास परियोजना की संक्षिप्त रूप रेखा,
1.2 परियोजना क्षेत्र का रेखांकन और उसके प्रभाव क्षेत्र का विवरण,
1.3 परियोजना के प्रत्येक तथा परोक्ष लाभों का विवरण,
1.4 भू-अभिलेखों के अनुसार परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का क्षेत्रफल, स्वरूप/प्रकार (शासकीय वन, शासकीय राजस्व, सेवा भूमि, निजी भूमि, आदि) वर्तमान उपयोग, आदि का विवरण,
1.5 क्षेत्र में प्रचलित कृषि, व्यवसायिक तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों का विवरण,
1.6 परियोजना के लिए अधिग्रहित की जाने वाली निजी भूमि के भूमि स्वामियों एवं पट्टेदारों का विवरण,
1.7 परियोजना के क्रियान्वयन से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों (जैविक विविधता, वन, पानी तथा वायु पर संभावित प्रभावों) और पर्यावरण संरक्षण के लिये की जाने वाली कार्रवाई/उपायों का विवरण,
1.8 परियोजना के लिए भू-अर्जन के कारण विस्थापित परिवारों को आदर्श पुनर्वास नीति के प्रावधानों के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कार्य योजना,
1.9 परियोजना के लिए भू-अर्जन के कारण रोजगार के लिए पात्र व्यक्तियों का कौशल बढाने, प्रशिक्षण देने संबंधी कार्ययोजना,
1.10 परियोजना का क्रियान्वयन करने वाले विभाग/उपक्रम/संस्थान द्वारा परियोजना के क्षेत्र में किए जाने वाले सामाजिक तथा कल्याणकारी कार्यकलापों का विवरण।
2. ऐसी पुनर्वास योजनाएं जिनमें भू-अधिग्रहण के फलस्वरूप पुनर्बसाहट आवश्यक हो:-
इन परियोजनाओं के लिए उपर्युक्त सामान्य प्रावधानों के साथ-साथ निम्नलिखित अतिरिक्त विवरण दिया जाएगा :-
2.1 विस्थापितों की अनिवार्यता के बारे में स्पष्ट वक्तव्य,
2.2 विस्थापित होने वाले प्रभावित परिवारों का विवरण।
2.3 विस्थापितों की पुनर्बसाहट के लिए पुनर्वास नीति के अनुरूप कार्य योजना जिसमें निम्नलिखित के उल्लेख हो :-
(क) पुनर्बसाहट हेतु भूमि चयन,
(ख) पुनर्बसाहट किये जाने वाले व्यक्तियों को भू-खण्ड आबंटन के प्रस्ताव,
(ग) पुनर्वासित किये जाने वाले व्यक्तियो के लिए वैकल्पिक रोजगार व्यवस्था का विवरण,
2.4 ऐसे व्यक्तियों जिनके बारे में फिर से विस्थापन की संभावना हो, यदि कोई हो तो के मामले में फिर से विस्थापन की अनिवार्यता के बारे में स्पष्ट वक्तव्य और उसके लिए प्रस्तावित काय्रक्रम।
3. कतिपय योजनाओं के लिए अतिरिक्त प्रावधान:-
सिंचाई पन बिजली परियोजनाओं, औद्योगिक/खनिज उत्पादन परियोजनाओं, अभयारण्य/राष्ट्रीय उद्यान परियोजनाओं आदि के मामलों में पुनर्वास योजना में उपर्युक्त पैरा-1 व 2 के अतिरिक्त इस नीति के खण्ड -11 के प्रावधानों के अनुसार अतिरिक्त सुस्पष्ट विवरण अंकित किये जाएंगे।

 

परिशिष्ट – तीन
सहमति पत्र (मैमोरेन्डम ऑफ अन्डरस्टैंडिंग)
[आदर्श पुनर्वास नीति संशोधित वर्ष 2007 (यथासंशोधित) की कण्डिका 3.6 के अधीन]
यह कि संस्था......................(विभाग/उपक्रम/संस्थान) द्वारा...................... ग्राम/ग्रामा..............तहसील............जिले में परियोजना (परियोजना का नाम) के क्रियान्वयन हेतु भूमि की मांग की गई है,
और यह कि राज्य शासन द्वारा उपर्युक्त क्षेत्र में ...............(विभाग/उपक्रम/ संस्थान) द्वारा परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का अनुषंगी कानूनों का पालन करते हुए भू-अर्जन अधिनियम 1894 के अधीन अर्जन करने की अनुमति दी गई है,
और यह कि .....................(विभाग/उपक्रम/ संस्थान) द्वारा राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति के प्रावधानों के अनुसार भू-अर्जन से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास हेतु तैयार की गई पुनर्वास योजना राज्य शासन से प्राप्त हो गई है,
अतएव यह सहमति (मैमोरेन्डम ऑफ अन्डरस्टैंडिंग) आज दिनांक............ माह. .............वर्ष.......................को छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से कलेक्टर जिला ..................(प्रथम पक्ष), जिस अभिव्यक्ति में जहां अपेक्षित हो, उनके पदानुवर्ती शामिल होंगे, और .................. विभाग/उपक्रम/ संस्थान (द्वितीय पक्ष), जिस अभिव्यक्ति में, जहां संदर्भ में अपेक्षित हो उनके वैद्य प्रतिनिधि, निष्पादक, उत्तराधिकारी शमिल होंगे, के बीच निम्नलिखित के संबंध में हुई सहमति को अभिलिखित करनें के लिए निष्पादित किया जाता हैः
1...................(विभाग/उपक्रम/संस्थान) द्वारा उपर्युक्त परियोजना के लिए भू-अर्जन से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए राज्य शासन द्वारा यथा अनुमोदित पुनर्वास योजना का क्रियान्वयन किया जाएगा।
2...................(विभाग/उपक्रम/संसथान) द्वारा पुनर्वास योजना के क्रियान्वयन हेतु गठित जिला स्तरीय पुनर्वास समिति तथा राज्य स्तरीय समिति को पूर्ण सहयोग दिया जाएगा।
3. प्रथम पक्ष जिला कलेक्टर द्वारा अनुषंगी कानूनों का पालन करते हुए भू-अर्जन अधिनियम 1894 तथा संबंधित नियमों व राज्य शासन के स्थायी निर्देशों का पालन करते हुए द्वितीय पक्ष की परियोजना के लिए आवश्यक निजी भूमि का अर्जन किया जाएगा। प्रथम पक्ष द्वारा अर्जित की गई निजी भूमि तथा शासकीय भूमि उद्योग विभाग /छत्तीसगढ़ स्टेट इन्डस्ट्रियल डेवलपमेंट कार्पोरेशन (सी.एस.आई.डी.सी.) के माध्यम से परियोजना के क्रियान्वयन हेतु ......................(विभाग/उपक्रम/संसथान) को उपलब्ध करायी जाएगी।
4. यदि किसी बिन्दु या विषय की व्यख्या संबंधी विवाद की स्थिति निर्मित होती है तो उसे निराकरण हेतु संबंधित जिला स्तरीय पुनर्वास समिति को संदर्भित किया जाएगा। विवादित बिन्दु का जिला स्तरीय पुनर्वास समिति के स्तर पर निराकरण न हो पाने की स्थिति में उसे राज्य शासन को संदर्भित किया जाएगा। राज्य शासन का निर्णय अन्तिम व बंधनकारी होगा।
तदनुसार इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये गऐ।
प्रथम पक्षकार द्वितीय पक्षकार
राज्य शासन की ओर से कलेक्टर आवेदक (विभाग/उपक्रम/संस्थान) का अधिकृत प्रतिनिधि
जिला........................... नाम......................
पदनाम......................
साक्षी साक्षी
1......................... 1.........................
2........................ 2........................
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