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State Water Resources Development Policy
राज्य जल संसाधन विकास नीति
छत्तीसगढ़ शासन जल संसाधन विभाग
दाऊ कल्याण सिंह भवन, मंत्रालय, रायपुर
ज्ञाप. 3970/2/ज.सं./त.शा./2001/डी -4 रायपुर दिनॉक 03.11.2001
''अधिसूचना''
विषय :-राज्य शासन की जल संसाधन विकास नीति।
राज्य शासन एतद् द्वारा तत्काल प्रभाव से छत्तीसगढ़ राज्य की ''जल संसाधन विकास नीति'' निम्नानुसार घोषित करता है :-
1. प्रस्तावना
जल, छत्तीसगढ़ राज्य का बहुमूल्य संसाधन है। प्रदेश की लगभग 80% आबादी कृषि तथा कृषि आधारित गतिविधियों पर अपनी जीविका के लिये निर्भर है। प्रदेश में कृषि भी अधिकांषत: वर्षा पर आश्रित है। अत: राज्य के विकास हेतु जल संपदा का प्रभावी तथा दक्ष(Efficient) दोहन आवश्यक है। यद्यपि छत्तीसगढ़ राजय में जल संपदा का अथाह भंडार है, परन्तु इसका समुचित दोहन अभी तक नहीं हुआ है। पिछले अनेक वर्षों से वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण न केवल अपूर्ण सिंचाई योजनाओं को पूर्ण नहीं किया जा सका, बल्कि पूर्ण योजनाओं के संधारण हेतु भी प्रभावी व्यवस्था नहीं की जा सकी है। 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य के गठन ने प्रदेश में जल संसाधनों के विकास हेतु एक अवसर प्रदान किया है। प्रदेश के आर्थिक विकास में जल संसाधनों के विकास की महत्तवपूर्ण भूमिका को देखते हुए एक प्रभावी एवं व्यवहारिक ''जल संसाधन विकास नीति'' अत्यंत आवश्यक है।
2. वर्तमान परिदृष्य
छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, जहॉ 80% से अधिक आबादी कृषि पर आश्रित है। राज्य का लगभग 44% क्षेत्र वनाच्छादित है तथा आबादी का लगभग 22% आदिवासी है। प्रदेश में वर्ष 2000 की स्थिति में लगभग 13.40 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का निर्माण किया जा चुका है जबकि वास्तविक सिंचाई लगभग 9.3 लाख हेक्टेयर में ही हो रही है। प्रदेश में निराबोया गया क्षेत्र में 58.30लाख हेक्टेयर है तथा निर्मित सिंचाई का प्रतिशत 23 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय औसत 38 प्रतिशत से काफी कम है। एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में उपलब्ध जल संसाधनों के आधार पर कुल लगभग 43 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो सकती है, जिससे सिंचाई क्षमता बढ़कर लगभग 75 प्रतिशत हो सकती है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु वर्तमान दरों पर लगभग रूपये 25 हजार करोड़ का निवेश आवश्यक होगा। वर्तमान में प्रदेश में कुल 3 वृहद परियोजनाएं, 30 मध्यम परियोजनायें तथा 1957 लघु योजनायें पूर्ण है तथा वर्तमान में 4 वृहद 9 मध्यम तथा 348 लघु सिंचाई योजनायें निर्माणाधीन है। निर्माणाधीन योजनाओं में प्रमुख योजनायें मिनीमाता हसदेव बांगो परियोजना, महानदी परियोजना समूह, जोंक व्यपवर्तन, शिवनाथ व्यपवर्तन, बरनई कोसारटेडा, सुतियापाट आदि है। प्रदेश की प्रमुख नदियां महानदी, शिवनाथ, हसदेव तथा इन्द्रावती आदि हैं प्रदेश के विकास में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये जल संसाधनों का विकास ही प्रदेश के विकास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कुँजी है।
3. उद्देश्य
जल संसाधनों का विकास प्रमुखत: पेयजल, कृषि तथा औद्योगिक प्रयोजन के लिए आवश्यक है। जल संसाधनों के विकास में व्यापक निवेश आवश्यक होता है, किन्तु सामाजिक-आर्थिक कारणों से इस निवेश पर आमदनी (Return) अत्यंत कम होती है। जल संसाधनों के विकास हेतु बांधों के निर्माण सें डूब में आने वाले क्षेत्रों का वन भी प्रभावित होता हे तथा ग्रामवासी भी। डूब क्षेत्र में आने वाले ग्राम वासियों का प्रभावी पुनर्वास अत्यंत आवश्यक है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शासन की ''जल संसाधन विकास नीति'' के प्रमुख उद्देश्य निम्न है :-
(i) जल संसाधनों का सुनियोजित विकास इस प्रकार करना, जो पर्यावरण की दृष्टि से (sustainable) हों।
(ii) सूखा प्रभावित क्षेत्रों तथा वृष्टिछाया क्षेत्रों (rainshadow areas) में जल संसाधनों के विकास के हर संभव प्रयास, जो तकनीकी दृष्टि से साध्य हों।
(iii) पेयजल, कृषि एवं उद्योग हेतु आवश्यक जल व्यवहारिक दरों पर उपलब्ध कराना, ताकि कम से कम संधारण व्यय की पूर्ति हो सके।
(iv) जल संसाधनों के विकास में आवश्यक वृहद निवेश को देखते हुए निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
(v) जल संसाधनों के विकास एवं संधारण में जल उपभोक्ताओं के प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
4. जल संसाधन विकास नीति के अंग
जल संसाधन विकास हेतु राज्य शासन की नीति के निम्न प्रमुख अंग है :-
1. जल संसाधनों की आयोजना (Water Resources Planning)
2. जल संसाधनों का विकास (Water Resources Development)
3. जल संसाधनों का प्रबंधन (Water Resources Management)
4. जल दरो का युक्तियुक्त करण (Rationalisation of Water Rates)
5. जल संरक्षण (Water Conservation)
4.1 जल संसाधनों की आयोजना (Water Resouces Planning)
राज्यकी वर्तमान एवं भविष्य के लिये जल की आवश्यकता की पूर्ति हेतु जल संसाधनों की आयोजना के उद्देश्य से राज्य शासन द्वारा :-
(i) राज्य में सतही एवं भूजल की मात्रा का आंकलन किया जायेगा तथा भूजल तथा सतही जल की उपलब्धता के आधार पर एक समन्वित ''जल संसाधन विकास मास्टर प्लान'' तैयार किया जायेगा।
(ii) यह सुनिश्चित किया जायेगा कि वृहद एवं मध्यम परियोजनाओं की योजना तैयार करते समय पेयजल तथा सिंचाई के अलावा उद्योग तथा विद्युत उत्पादन के लिये जल की आवश्यकता को भी ध्यान में रखा जाये।
(iii) जल संसाधनों के उपयोग में राज्य शासन पेयजल तथा कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता देगा।
(iv) लघु सिंचाई योजनाओं की आयोजना के समय कृषकों तथा स्थानीय नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी।
(v) सतही एवं भूजल के समन्वित उपयोग को प्राथमिकता दी जायेगी तथा उपलब्ध भूजल का वैज्ञानिक पध्दति से समय-समय पर आंकलन किया जायेगा।
(vi) भूजल के दोहन को संतुलित बनाये रखने हेतु आवश्यक कानूनी प्रावधान किये जायेंगे।
4.2 जल संसाधनों का विकास (Water Resoources Development)
प्रदेश के विकास में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये राज्य शासन जल संसाधनों के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। प्रदेश में जल संसाधनों के विकास हेतु निम्नानुसार रणनीति अपनाई जाएगी।
(i) निर्माणाधीन योजनाओं को उनकी प्रगति के आधार पर प्राथमिकता निर्धारित कर चरणबद्ध रूप से पूर्ण करने हेतु राशि उपलब्ध कराई जायेगी। इसके लिये राज्य के बजट के अलावा नाबार्ड, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम अथवा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से धन राशि जुटाने का प्रयास किया जायेगा।
(ii) नवीन योजनाओं में लगने वाले व्यापक निवेश को देखते हुए जल संसाधनों के विकास में निजी निवेश का स्वागत किया जाएगा।
(iii) नवीन योजनायें वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर इस प्रकार ली जायेंगी, ताकि वे निश्चत समयावधि में पूर्ण की जाकर लाभ देने लगे।
(iv) नवीन योजनायें लेते समय क्षेत्रीय असंतुलन को भी ध्यान में रखा जायेगा।
(v) नवीन योजनाओं को लेते समय विस्थापितों के पुर्नवास एवं पर्यावरण संतुलन को उच्चतम प्राथमिकता दी जायेगी तथा राज्य का पुर्नवास पैकेज आकर्षक बनाया जाएगा। परियोजनाओं हेतु अधिग्रहित होने आली भूमि के मुआवजे की राशि के भी शीघ्र भुगतान की व्यवस्था की जायेगी। पुर्नवास तथा पुर्नबसाहट की प्रक्रिया में परियोजना से प्रभावितों की सक्रिय भागीदारी को प्राथमिकता दी जायेगी।
(vi) सूखा प्रभावित क्षेत्रों तथा जल वृष्टि क्षेत्रों में जल संसाधनों के विकास के लिए हर संभव प्रयास किये जायेंगे।
(vii) राज्य शासन ऐसी उद्वहन सिंचाई योजनाओं को प्रोत्साहित करेगा, जिनका रखरखाव व संधारण का दायित्व लेने हेतु उपभोक्ता सहमत हो।
(viii) अंतर्राज्यीय जल विवादों को यथासंभव बातचीत के जरिये शीघ्रातिशीघ्र सुलझाने का प्रयास किया जायेगा।
4.3 जल संसाधनों का प्रबंधन (Water Resources Management)
निर्मित योजनाओं के समुचित रख-रखरखाव को पूर्व में अपेक्षित प्राथमिकता नहीं दिये जाने के कारण विशाल भंडार वाले बांधों एवं नहरों की पूर्ण क्षमता का उपयोग संभव नहीं हो सका है निर्मित योजनाओं के बेहतर संधारण तथा नहरों के विस्तार से कम खर्च में अतिरिक्त सिंचाई सुविधा प्राप्त की जा सकती है। जल संसाधनों में बेहतर प्रबंधन हेतु राज्य शासन द्वारा :-
(i) बांध, नहरों आदि के सुधार तथा संधारण हेतु वास्तविक आवश्यकता का आंकलन कर आवश्यकतानुसार अतिरिक्त राशि यथाशीघ्र उपलब्ध कराने का प्रयास किया जायेगा।
(ii) कृषकों तथा जल उपभोक्ताओं की सिंचाई व्यवस्था के प्रबंधन में भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी।
(iii) औद्योगिक क्षेत्रों में जल वितरण की व्यवस्था तथा प्रबंधन में निजी निवेश का स्वागत किया जायेगा।
(iv) कृषकों को सिंचाई की कुशल व्यवस्था में प्रशिक्षित करने हेतु तथा जल संरक्षण के क्षेत्रो में अशासकीय संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जायेगा।
(v) निर्मित बांध एवं बड़े निर्माण कार्यों की सुरक्षा हेतु समुचित व्यवस्था की जाएगी।
(vi) बाढ़ नियंत्रण में संचार व्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए बांधों एवं नहरों के प्रबंधन में आधुनिक संचार व्यस्था स्थापित की जायेगी।
4.4 जल दरों का युक्तियुक्त करण(Rationalisation of Water Rates)
जल परियोजनाओं की निर्माण लागत तथा जल को किसी स्थान पर उपलब्ध कराने की लागत काफी अधिक आती है। अत: जल दरों का निर्धारण, जल के संग्रहण में लगने वाली राशि तथा उससे प्राप्त होने वाले लाभ को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। इसके लिये निम्नानुसार कार्यवाही की जायेगी-
(i) कृषि तथा उद्योग हेतु जल दरों का युक्तियुक्त करण इस उद्देश्य से किया जायेगा, ताकि परियोजना पर व्यय की गई राशि की आगामी वर्षों में आंशिक रूप से तथा कम से कम योजना के संधारण हेतु राशि की भी पूर्ति हो सके।
(ii) जल दरों के नियमित रूप से पुर्ननिर्धारण की व्यवस्था स्थापित की जायेगी।
4.5 जल संरक्षण (Water Conservation)
जल की सीमित उपलब्धता तथा ऊंची लागत को देखते हुये जल संसाधनों का मितव्ययी उपयोग तथा संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। राज्य शासन द्वारा :-
(i) जल संरक्षण हेतु नवीन टेक्नालाजी के उपयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा।
(ii) जल संरक्षण के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जायेगा।
(iii) जल संरक्षण की आवश्यकता तथा विभिन्न तकनीकों के संबंध में जागरूकता पैदा करने के सभी प्रयासों को प्रोत्साहित किया जायेगा।
5 कार्य योजना
जल संसाधन विकास नीति को क्रियान्वित करने हेतु निम्नानुसार कार्यवाही की जायेगी -
5.1 वैधानिक पहल (Legal Initiatives)
भूजल के संतुलित दोहन विनियमित करने तथा प्रबंधन में कृषकों की बेहतर भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु विद्यमान प्रावधानों में आवश्यकतानुसार संशोधन किया जायेगा।
5.2 संस्थागत सुधार एवं क्षमता वृद्धि हेतु पहल
(Institutional Reforms and Capacity Building)
इसके अंर्तगत निम्न कार्य किये जायेंगे -
(i) राज्य में जल संसाधनों के विकास की आयोजना तथा विकास के संबंध में मुख्य मंत्री जी की अध्यक्षता में गठित ''छत्तीसगढ़ सिंचाई परियोजना मंडल'' द्वारा नियमित समीक्षा कर दिशा निर्देश दिये जायेंगे।
(ii) राज्य जल उपयोगिता समिति, संभागीय जल उपयोगिता समिति तथा जिला जल उपयोगिता समिति के माध्यम से जल के उपयोगों की प्राथमिकता का निर्धारण किया जायेगा।
(iii) जल संसाधन विभाग में वैज्ञानिक पद्धति से डाटा बेस की स्थापना कर डाटा एकत्र किये जायेंगे, ताकि सतही एवं भूजल संपदा की मात्रा एवं गुणों का सही आंकलन हो सके एव जल संसाधन की आयोजना में उनका उपयोग किया जा सके।
(iv) जल दरों के निर्धारण एवं नियमित पुनरीक्षण हेतु एक समिति का गठन किया जायेगा।
(v) निर्मित बड़े बांध एवं बड़े निर्माण कार्यों की सुरक्षा हेतु बांध सुरक्षा प्रकोष्ठ का गठन किया जायेगा।
(vi) जल संसाधन विभाग के अधिकारी /कर्मचारियों के नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जायेगी। इसी प्रकार कृषकों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाएगी। प्रशिक्षण हेतु सुनिश्चित विषयों एवं मापदंडों का निर्धारण किया जायेगा। इसके अंतर्गत परियोजना का आयोजन, क्रियान्वयन, संचालन एवं जल वितरण जैसे विषय भी होंगे।
5.3 सामाजिक जागरूकता
जल की बहुमूल्यता के प्रति सामाजिक जागरूकता पैदा करने की दिशा में निम्न प्रयास किये जायेंगे। -
(i) जल संसाधनों की व्यवस्था संबंधी निर्णय के पूर्व जल उपभोक्ता विभागों तथा संस्थाओं से परामर्श किया जायेगा।
(ii) जल संरक्षण के प्रति सामाजिक जागरूकता पैदा करने हेतु जनता की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जायेगा। इस कार्य में स्थानीय संस्थाओं तथा समाजसेवी संस्थाओं को भी शामिल किया जायेगा।
6. उपसंहार
छत्तीसगढ़ राज्य की जल संसाधन विकास नीति राज्य में पेयजल, कृषि एवं उद्योगों के लिये स्वच्छ पर्यावरण के साथ समुचित जल व्यवहारिक दरों पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य पर आधारित है। इसमें वित्तीय संसाधनों को ध्यान में रखते हुये जल संसाधनों की आयोजना, निर्माण, संधारण एवं संचालन के माध्यम से जल उपभोक्ता को आवश्यक जल उपलब्ध कराने की अवधारणा अपनाई गई है, तथा समाज सेवी संस्थाओे एवं निजी क्षेत्रों की भूमिका को भी प्रोत्साहित किया गया है। अपेक्षा की जाती है कि राज्य जल संसाधन विकास नीति के क्रियान्वयन से छत्तीसगढ़ में जल संपदा का सर्वांगीण विकास हो सकेगा।
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के नाम से तथा आदेशानुसार
सही /-
(अजय सिंह)
सचिव
पृष्ठांकन क्रं. -3971/2/ज.सं./त.शा./2001/डी-4

रायपुर दिनांक : 03.11.2001

1. माननीय मंत्री जी /राज्य मंत्री जी, जल संसाधन एवं ऊर्जा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन-रायपुर।
2. मुख्य सचिव, छत्तीसगढ शासन, रायपुर।
3. अतिरिक्त मुख्य सचिव, छत्तीसगढ शासन वित्त वाणिज्य कर, योजना आर्थिक एवं सांख्यिकीय विभाग, रायपुर।
4. छत्तीसगढ शासन के समस्त विभागों के प्रमुख सचिव / सचिव रायपुर।
5. सचिव, महामहिम राज्यपाल का सचिवालय/मुख्यमंत्री सचिवालय /विधान सभा सचिवालय।
6. अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल, रायपुर।
7. प्रमुख अभियंता, जल संसाधन विभाग, रायपुर।
8. संचालक, जनसंपर्क को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु।
9. उपनियंत्रक, मुद्रण तथा लेखन सामग्री, छत्तीसगढ़ शासकीय क्षेत्रीय मुद्रणालय, राजनांदगांव (छ.ग.) की ओर छत्तीसगढ़ राजपत्र के आगामी अंक में प्रकाशनार्थ।
कृपया प्रकाशन उपरांत अधिसूचना की 50 प्रतियों का प्रदाय विभाग को शीघ्र करें।
10. प्रबंध संचालक, छत्तीसगढ़ अधोसंरचना विकास निगम, रायपुर।
सही/-
(डॉ. एम. व्ही. सुब्बारेड्डी)
उपसचिव
जल संसाधन विभाग, रायपुर